आज की खबर: US Economy: डॉलर होगा कमजोर, अमेरिका के एक फैसले से भारत समेत इन देशों को होगा बड़ा फायदा!
अर्थव्यवस्था के मामले में अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा देश है, जिसकी GDP $30.507 ट्रिलियन है. इस बीच अमेरिका की केंद्रीय बैंकिंग संस्था फेडरल रिजर्व ने एक और बार ब्याज दरों में कमी का ऐलान किया है. इस कटौती के बाद प्रमुख दर अब 3.9 प्रतिशत हो गई है, जो पहले 4.1 प्रतिशत थी. यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सरकारी शटडाउन और रोजगार बढ़ने के दर में कमी देखने को मिल रही है. हालांकि, फेड का कहना है कि यह कदम आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने और रोजगार पैदा करने को लेकर बढ़ावा देने के लिए जरूरी था. फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने दरों में कटौती की घोषणा करते हुए कहा कि सरकारी शटडाउन से आर्थिक गतिविधियों पर असर जरूर पड़ा है, लेकिन यह प्रभाव स्थायी नहीं होगा. उन्होंने बताया कि सरकारी कामकाज ठप रहने के कारण रोजगार और मुद्रास्फीति के आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं हो पा रहे हैं. इस वजह से फिलहाल फेड को निजी संस्थानों से मिले आर्थिक संकेतों पर भरोसा करना पड़ रहा है. दरें घटाने की वजह बनी रोजगार में गिरावट और महंगाई की रफ्तारफेड ने पिछले दो सालों में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को 5.3 प्रतिशत तक बढ़ाया था. इस बीच रोजगार की रफ्तार धीमी हुई है, नए काम के अवसर घट रहे हैं और उपभोक्ता खर्च में कमी आई है. महंगाई दर अब लगभग 3 प्रतिशत पर है, जो फेड के तय लक्ष्य 2 प्रतिशत से ज़्यादा है. इसके बावजूद, पॉवेल ने कहा कि अब ध्यान आर्थिक विकास और रोज़गार बढ़ाने पर रहेगा, क्योंकि बहुत सख्त मौद्रिक नीति से बाजार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. अमेरिकी जनता और दुनिया पर असरफेडरल रिजर्व के इस फैसले से आम अमेरिकी नागरिकों को राहत मिलने की उम्मीद है. लोन की किस्तें सस्ती होंगी, मकान और गाड़ियों के लिए ब्याज दरें घटेंगी और व्यापारिक कर्ज लेना आसान होगा. हालांकि, बचत खातों पर ब्याज में कमी आने की संभावना बनी रहेगी. वैश्विक स्तर पर भी यह कदम महत्वपूर्ण है. कम अमेरिकी दरों के कारण डॉलर कमजोर हो सकता है और इससे भारत समेत एशियाई देशों में निवेश बढ़ने की संभावना है. सरकारी शटडाउन बना बड़ी चुनौतीअमेरिका में इस समय चल रहा फेडरल शटडाउन सरकार और कांग्रेस के बीच बजट विवाद का परिणाम है. लाखों सरकारी कर्मचारी बिना वेतन के हैं और कई विभागों का कामकाज ठप पड़ा है. पॉवेल ने कहा कि सरकारी आंकड़े न मिलने से फेड की नीति तय करना मुश्किल हो गया है. इस वजह से दिसंबर में होने वाली अगली बैठक में दर घटाने का फैसला परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. ये भी पढ़ें: ‘…तो धरती से मिट जाएगा मॉस्को का नामो-निशां’, बेल्जियम के रक्षा मंत्री ने पुतिन को क्यों दी धमकी?
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