आज की खबर: स्मार्ट टीवी अपडेट करते वक्त ये एक गलती पड़ सकती है बहुत भारी, जानें सही तरीका नहीं तो नया TV खरीदना पड़ेगा

एलन मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट देने वाली कंपनी स्टारलिंक जल्द ही भारत में अपनी सर्विस शुरू कर सकती है. हाल ही में खबर आई थी कि कंपनी ने सर्विस प्लान लॉन्च कर दिए हैं, लेकिन बाद में स्टारलिंक की तरफ से इसका खंडन किया गया. कंपनी ने कहा कि तकनीकी खामी के कारण टेस्ट डेटा पब्लिक हो गया था और अभी प्राइस अनाउंस नहीं किए गए हैं. स्टारलिंक पर शुरू हुई इस चर्चा के बहाने आज के एक्सप्लेनर में हम जानेंगे कि सैटेलाइट इंटरनेट काम कैसे करता है और क्यों इसकी जरूरत पड़ी? साथ ही इसके फायदों और नुकसान पर भी चर्चा करेंगे.  कैसे काम करता है सैटेलाइट इंटरनेट? जैसा नाम से ही जाहिर है कि सैटेलाइट इंटरनेट में लोगों को इंटरनेट के जरिए इंटरनेट की सर्विस प्रदान की जाती है. सैटेलाइट टीवी की तरह ही सैटेलाइट डिश जियोस्टेशनरी, लो या हाई अर्थ ऑरबिट में मौजूद सैटेलाइट से रेडियो वेव्स रिसीव करती हैं और यूजर को इंटरनेट मिल पाता है. इसके पीछे काफी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का यूज होता है. आसानी से समझने के लिए इस पूरी प्रोसेस को तीन भागों में बांटा जा सकता है.  सैटेलाइट डिश- आमतौर पर यह घर की छत पर लगी होती है और इसका काम डेटा रिसीव और ट्रांसमिट करना होता है. सैटेलाइट- स्पेस में मौजूद सैटेलाइट डिश से इंफोर्मेशन रिसीव करते हैं और फिर इसे जमीन पर मौजूद डेटा सेंटर तक भेजते हैं.डेटा सेंटर- डेटा सेंटर इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर से कनेक्टेड होते हैं. ये सैटेलाइट की तरफ से आई रिक्वेस्ट को पूरा कर वापस जानकारी सैटेलाइट तक भेजते हैं और फिर सैटेलाइट इस जानकारी को आपके घर की छत पर लगी डिश तक भेजते हैं. इसलिए आसान है रिमोट इलाकों में सैटेलाइट इंटरनेट का पहुंचना सैटेलाइट इंटरनेट देने वाली कंपनियों को डेटा सेंटर की जरूरत पड़ती है और ये अलग-अलग जगहों पर बनाए जाते हैं. सैटेलाइट इंटरनेट को केबल, फाइबर और फोन लाइन आदि की जरूर नहीं पड़ती. दूसरी तरफ अगर मोबाइल नेटवर्क की बात करें तो इसके लिए जमीन पर पूरा नेटवर्क तैयार करना पड़ता है. ऐसे में अगर किसी स्थान पर इंटरनेट यूज करने वाले कम लोग हैं तो भी कंपनियों के नेटवर्क सेटअप करने में भारी कीमत खर्च करनी पड़ती है. सैटेलाइट इंटरनेट इस समस्या को दूर कर देता है. सैटेलाइट इंटरनेट को किसी भी इलाके से एक्सेस किया जा सकता है और इसके लिए अलग से खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती. क्यों पड़ी सैटेलाइट इंटरनेट की जरूरत? केबल और टावर का यूज करने वाले ग्राउंड बेस्ड नेटवर्क की कुछ लिमिटेशन हैं. शहरों या घनी आबादी वाले इलाकों में इनकी मौजूदगी अच्छी होती हैं, लेकिन रिमोट इलाकों में ये नेटवर्क अभी तक नहीं पहुंचा है. इसके अलावा बाढ़ या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में इनकी सर्विस प्रभावित होती है. साथ ही अगर कहीं टेंपरेरी तौर पर नेटवर्क की जरूरत पड़े तो ट्रेडिशनल नेटवर्क उसे पूरा नहीं कर पाता. इन सब चुनौतियों से पार पाने के लिए सैटेलाइट इंटरनेट की जरूरत पड़ी. सैटेलाइट इंटरनेट हर प्रकार के टैरेन में स्टेबल और कंटिन्यूस कनेक्टिविटी दे सकता है. यह जरूरत के हिसाब से ऑन-डिमांड कहीं…
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